दुःख की व्यथा समाये ना
सुख विसरा जाये ना।
सुनें यहाँ कौन है किसकी
सब अपनी बतियाएँ ना । १।
मन सा वाचा धर्म सा
मैं विफरा बस कर्म सा ।
योग संयोग वियोग बस
बना रहा एक मर्म सा । २।
सत्युग द्वापर - कलयुग आया
राम चंद्र ने खूब बनाया।
हंस रहा परम हंस सा
कौआ मोती खाये ना । ३।
दुःख की व्यथा समाये ना
सुख विसरा जाये ना।
मिल जाये बस राज योग
कर्म करें पछताए ना । ४।
भाग्य + कर्म + संयोग = फल .................।
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